वनस्पति विज्ञान

 विभिन्न प्रकार  के पेड़ पौधे तथा उनकी किर्या कलापो अध्ययन को वनस्पति विज्ञान कहते हैं थियोफास्टस को वनस्पति विज्ञान का जनक कहा जाता हैं

पादपों का वर्गीकरण :-  एकलर ने 1883 में वन

स्पति जगत का वर्गीकरण निम्न रूप से किया

                                   पादप                                               1. cryptogamae                   2.phanerogamae

Cryptogamus वर्ग के पौधों में पुष्प तथा बीज नहीं होते हैं इससे निम्न समूह में बांटा गया है पहला थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा। 

Thalophyta :- यहां वनस्पति जगत का सबसे बड़ा समूह है इस समूह में पौधों का सरूर सुखाय होता है अर्थात पौधे जड़ तना पत्ती आदि में विभक्त नहीं होते हैं इसम समवहन  ऊतक नहीं होता है

  थैलोफाइटा को 3 वर्गों में बांटा गया है शैवाल कवक जीवाणु

1.शैवाल :- इसके अध्ययन को फाइकोलॉजी कहते हैं   पढ़ रहित युक्त, संवहन ऊतक रहित ,आत्म पोषि सदृश्य होता है शरीर सुकाय होता है

 वाले लाभदायक होती हैं जैसी भोजन के रूप में  ,अल्बा

लैमिनेरिया नॉनस्टॉप सर्गासन फोरफाइरा

आयोडीन बनाने में कुछ शेवालों का यूज किया जाता है जैसे कि लैमिनेरिया फ्यूकस ैक्लोनिया

खाद के लिए । नॉन स्टॉक , एनाबीन, केल्प 

औषधि बनाने के लिए कोलेरा से फ्लोर रैली नामक प्रतिजैविक एवं लय में लैमिनेरिया टिंचर आयोडीन बनाई जाती हे अनुसंधान कार्य में शैवाल का उपयोग किया जाता है

कवक ( fungi) इस अध्ययन को माइकोलॉजी कहा जाता है कवक क्लोरोफिल रहित, केंद्रीय संवहन ऊतक रहित थैलोफाइटा कवक में संचित भोजन ग्लाइकोजन के रूप में रहता है इस की कोशिका भित्ति काईटीन की बनी होती है कवक पौधों में गंभीर रोग उत्पन्न करते हैं सबसे अधिक हानि रस्ट और smut से होती है पौधों में कवक के द्वारा होने वाला प्रमुख रोग सरसों में सफेद rust(white rust of crucifer), गेहूं का डीला smut(loose smut of wheat), गेहूं का किट्टू रोग(rust of wheat), आलू की अगमारी(blight of patato), गनने का लाल अप क्षय (red rod of sugarcane),मूंगफली का टीका रोग(टिक्का diseases of groundnut), आलू का मसारोग (wart diseases of potato) ,धान की भूरी अर्जित(brown leaf spot of rice),(late blight of patato), (damping Off of seedlings)


Bacteria (जीवाणु) इसकी खोज 1683 में हॉलेड के एंटोनिवान ल्युवेनहाक ने की जीवाणु विज्ञान का पिता ल्यूवेन हॉक को कहा जाता है एहरेनवर्ग ने 1829 में जीवाणु नाम दिया 1845 से 1910 में रॉबर्ट कोच ने खोला तथा तपेदिक के जीवाणु की खोज की तथा रोगों का जन्म सिद्धांत बताया लुइस पाश्चर ने रेड्डी का और दूध के पोस्टराइजेशन की खोज की आकृति के आधार पर जीवाणु कई प्रकार के होते हैं

1. Bacillus यह छड़ नुमा या बेलनाकार होता है 

2. गोलाकार (कोकस ):- यह गोलाकार हो छोटे जीवाणु होते हैं

3. कोमा आकार या विब्रियो अंग्रेजी के चिन्ह कोमां के आकार के उदाहरण विबिर्यो आदि

4. सर पिलाकर स्प्रिंग स्क्रू के आकार के होते हैंazotobacter,azospirillum, clostridium जीवाणु की कुछ जातियां स्वतंत्र रूप से मिट्टी में निवास करती है वह मिट्टी के कणों के बीच में स्थित वायु के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है anabaena तथा नॉनस्टॉप नामक साइनोबैक्टीरिया वायुमंडल में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं राइजोबियम तथा ब्लडी राइजोबियम इत्यादि जीवाणु की जातियां लेजियूमिनोसाई के पौधों की जड़ों में रहती है तथा वायुमंडल में नाइट्रोजन का फिक्सेशन करती हैं दूध को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए इसका पाश्चराइजेशन करते हैं इसमें दो विधियां है।                   1.low temperature holding method ( LTH) दूध को 62.8°पर 30 मिनिट तक गर्म करते हैं

2. High temperature short time method दूध को 71.7°c पर 150s गर्म करते हैं

चर्म उद्योग में चमड़े पर से बालों को और बसा को हटाने के लिए सवालों का यूज किया जाता है इसे चमड़ा कमाना कहते हैं अचार मुरब्बे शरबत को शक्कर की गाड़ी चासनी में या अधिक नमक में रखते हैं ताकि जीवाणु का संक्रमण होते ही जीवाणु का जीव द्रव्य कुंजन हो जाता है तथा जीवन नष्ट हो जाते हैं इसलिए अचार मुरब्बे बहुत अधिक दिनों तक खराब नहीं होते हैं शीत ग्रह कार में न्यूनतम -10 डिग्री सेल्सियस से -18 डिग्री सेल्सियस पर सामग्री का संचालन करते हैं ब्रायोफाइटा :- यह सबसे सरल स्थलीय पौधों का समूह है इस विभाग में लगभग 25000 जातियां सम्मिलित है इसमें संवहन ऊतकअर्थात जाइलम फ्लोएम का अभाव होता है इस समुदाय को वनस्पति जगत का एंफीबिया भी कहा जाता है इस समुदाय के पोथे मृदा अपरदन को रोकने में सहायता प्रदान करते हैं sphagnum नामक मास अपने स्वयं के भार से 18 गुना अधिक पानी सोखने की क्षमता रखता है इसलिए मालि इसका उपयोग पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय सुखाने से बचने के लिए करते हैं इसका प्रयोग इंधन के रूप में किया जाता है इस  मास का प्रयोग एंटीसेप्टिक रूप में किया जाता है

Pteridophyta (टेरीडोफाइटा ) :-

इस समूह के पौधे नवीन छायादार स्थानों जंगलों पहाड़ों पर अधिकता से पाए जाते हैं पौधे का शरीर जड़ तना शाखा पतियों में विभक्त रहता है तथा साधारण राइजोम के रूप में रहता है पौधे विजाणु  जनक होते हैं जन्म की क्रिया बीजाणु के द्वारा होती हैं इस समुदाय के पौधों में उत्तक पूर्ण विकसित होते हैं  परंतु जाइलम में वेसेल एवम फ्लोएम में सहकोशिकाएं नहीं होती हैं

पादप हार्मोन्स

Phanerogamus :- पौधे पूर्ण विकसित होते हैं इस समूह के सभी पौधे में फूल फल तथा बीज होते हैं समूह के पौधों को दो उप समूहों में बांटा गया बांट सकते हैं एक नग्न बीज,2. आवृत्तबीजी

नग्न बीज नग्न बीज पौधे वृक्ष झाड़ी एवं आरोही के रूप में होते हैं वह बहु वर्षीय लंबे होते हैं इनकी मूसला जड़  विकसित होती है परागण की क्रिया वायु के द्वारा होती है यह xerophytic होते हैं वनस्पति जगत का सबसे ऊंचा पौधा सिकोया सेंपरविरेंस के अंतर्गत आता है इसकी ऊंचाई 120 मीटर है इसे कोस्ट रेडवुड ऑफ कैलिफ़ोर्निया भी कहते हैं सबसे छोटा अनावृतबीजी पौधा जैमिया पिग्मिया  है जीवित जीवास्म cycas , ginkgo biloba ब metasequoia हैं ginkgo biloba को maiden hair tree भी कहते हैं cycas के ovules एवम antherogoids पादप जगत में सबसे बड़े होते हैं पाइनस के पराग कण इतनी तादत में होते हैंपीले बादल बन जाते हैं

 जिम्नोस्पर्म का आर्थिक महत्व भोजन के रूप में साइकस केतनो से मंड निकाल कर खाने वाला साबूदाना बनाया जाता है इसलिए साइकस को सागो पाम कहते हैं चीड़ और देवदार आदि की लकड़ी के फर्नीचर बनते हैं वास चीड़ के पेड़ से तारपीन का तेल देवदार की लकड़ी से( cedrus oil) जुनी पैरस की लकड़ी से  तेल निकलता है शंकु पौधों से रेजिन निकाला जाता है जिसका प्रयोग वार्निश पॉलिश पेंट आदि बनाने में होता है tanning चमड़ा व स्याही बनाने के काम आता है

Angiosperm ( आवर्तबीजी ):-  इस समूह के पौधों में बीज फल के अंदर होते हैं जड़ पत्ती फूल फल बीच सभी पूर्ण विकसित होते हैं ग्रुप समूह के पौधों में बीच में बीच पत्र होते हैं बीच पत्रों की संख्या के आधार पर पौधों को एक बीज पत्री पौधे तथा द्विबीजपत्री पौधे कहा जाता है

एक बीज पत्री पौधे उन पौधों को कहा जाता है जिसमें सिर्फ एक बीच पत्र होता है इन के कुल का नाम प्रमुख पौधों का नाम सारणी में है जैसे कि liliaceae:- लहसुन और प्याज

 Palmae :- सुपारी ,ताड़, नारियल, खजूर 

Gramineceae:- गेहूं मक्का बांस गन्ना चावल ज्वार बाजरा जो 

द्विबीजपत्री पौधे जिसमें पौधों में बीजों में दो पत्र होते हैं इन के कुल का नाम और प्रमुख पौधे निम्न प्रकार हैं

1.ctuciferae:- मूली , शलजम, सरसो

2. Malvaceae:- कपास , भिन्डी, गुड़हल

3. Leguminaceae :- बबूल छुई मुई कचना तथा गुलमोहर अशोक इमली सभी दलहन फसल, 

4. Composite:-सूरजमुखी, भृंगराज, गेंदा ,कुसुम सलाद, डेहलिया

5. Rutaceae:- नींबू संतरा मौसंबी बेल केता कामनी

6. Cucurbitaceae:- तरबूज ,खरबूजा, टिंडा ,कद्दू लौकी ,खीरा, ककड़ी, परवल, करेला

7.solanaceae:- आलू ,मिर्ची ,बैंगन ,धतूरा, बेल डोना, टमाटर

8. Rosaceae:- स्ट्रॉबेरी, सेब ,बादाम ,नाशपाती

पादप आकारिकी :- विभिन्न पादप भागो जैसे जड़ तना पत्ती फूल पुष्प के रूपो तथा गुणों के अध्ययन को आकार की कहते हैं

Root पौधों का अवरोही भाग है जो कि मूल अंकुर से विकसित होता है जड़  प्रकाश से दूर भूमि में वृद्धि करती है जोड़ दो प्रकार की होती है tap root, adventitious root

Stem- प्रकाश की ओर वृद्धि करता है प्रांकुर से विकसित होता है यह पौधे का परावर्तन बनाता है कुछ भूमिगत तने जैसे कंद- आलू ,धन कंद - केसर बंडा, शल्क कद- प्याज ,प्रकंद - हल्दी ,अदरक। 

Leaf हरे रंग की होती है इसका मुख्य कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा भोजन बनाना होता है

Flower:- यह पौधे का प्रजनन अंग है पुष्प में बाह्य दलपुंज , दलपुंज पुमंग जायांग पाए जाते हैं इनमें से पुमंग नर जननांग तथा जायांग मादा जननांग है तो पुमंग में एक या एक से अधिक पुंकेसर होते हैं उनमें परागण पाए जाते हैंजायंग में  अण्डप होते हैं 3 भाग होते हैं

1.Ovary 2.style 3. Stigma

Pollination:- परागकोष से निकलकर अण्डप के वृति कार्ग पर परागकण के पहुचने की क्रिया को  पराग कण दो प्रकार के होते है 1.self pollination  2. Cross -pollination

Fertilization:- परागनली बीजाड में प्रवेश करके  बीजांडकाय को भेदती हुई भ्रूण कोष तक पहुंचती है और पराग कणों को वहां छोड़ देती है इसके बाद एक नर युग्मक एक अंडकोशिका  से संयोजन करता है इसे निषेचन कहते हैं निषेचित अंडे युग्मनज कहलाता है आवृत्तबीजी में निषेचन त्रिक संलयन जबकि अन्य वर्ग के पौधों में द्वि संलयन होता है निश्चित निषेचन फलन कुछ पौधों में बिना निषेचन की अंडाशय फल बन जाता है इस प्रकार बिना निषेचन हुए फल के विकास को और अनिषक फलन कहते हैं साधारण का इस प्रकार के फल बीज रहित होते हैं जैसे केला पपीता नारंगी अंगूर अनानास

फल का निर्माण :- फल का निर्माण अंडाशय में होता है संपूर्ण फलों में तीन भागों में विभाजित किया गया है सरल फल:- अमरूद केला,   पुंज  फल:- स्ट्रॉबेरी, रसभरी  संग्रथीत फल :- कटहल , शहतूत।  कुछ फलों में बाय दलपज

 दलपुंज पुसपासमाधि भाग लेते हैं फलों के निर्माण में ऐसे फलों को असत्य फल कहते हैं सेब और कटहल

कुछ फल और उनके खाने योग्य भाग

सेब और नाशपति :- पुष्पा सन

आम, पपीता, :- मध्य फल भित्ति 

अमरूद , अंगूर, टमाटर :- फल भित्ति एवं बीजांड सन

नारियल :- भ्रूणपोष 

चना , मूंगफली :-  बीज पत्र एवं भ्रूण

नारंगी :- जूसी हेयर

केला :- मध्य एवम अन्त: भित्ति

लिची :- एरिल

काजू :- पुष्प वृंत बीच पत्र

गेहूं :-  भ्रूण पोष एवं भ्रूण  

शहतूत :- रसीले  दलपुंज 

कटहल  :- परीदलपुंज एवं बीज

अनानास :- परीदलपुंज


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